मुझे दुश्मनों से नहीं पर अपनों से विराना होने का डर लगता है !!
कहने को सबकुछ है पर अपनों को अपना कहते डर सा लगता है !!!
जो लोग कभी अपने थे उनको अपनाने का डर सा लगता है !!!!
जिन्हें कभी रंगों से रंगता था उनको अब रंग
मेरा लगभग 13 साल पहले एक ख्याब देखा था कि-एक अपनी शेरों-शायरी की "आपकी शायरी" के नाम से एक किताब प्रकाशित करूँ और फिर उसके बाद "आपकी शायरी" के द्धितीय संसकरण में आमन्त्रित शायरों की रचनाएँ प्रकाशित हो.आज यह ख्याब किताब के रूप में तो नहीं,मगर ब्लॉग के माध्यम से कुछ हद तक पूरा हो रहा है.इसमें अपनी रचनाओं के साथ ही कुछ दिल को छू लेने वाली संकलन रचनाएँ भी प्रकाशित करूँगा.
अपने बहूमूल्य सुझाव व शिकायतें अवश्य भेजकर मेरा मार्गदर्शन करें. आप हमारी या हमारे ब्लोगों की आलोचनात्मक टिप्पणी करके हमारा मार्गदर्शन करें और हम आपकी आलोचनात्मक टिप्पणी का दिल की गहराईयों से स्वागत करने के साथ ही प्रकाशित करने का आपसे वादा करते हैं. आपको अपने विचारों की अभिव्यक्ति की पूरी स्वतंत्रता है. लेकिन आप सभी पाठकों और दोस्तों से हमारी विनम्र अनुरोध के साथ ही इच्छा हैं कि-आप अपनी टिप्पणियों में गुप्त अंगों का नाम लेते हुए और अपशब्दों का प्रयोग करते हुए टिप्पणी ना करें. मैं ऐसी टिप्पणियों को प्रकाशित नहीं करूँगा. आप स्वस्थ मानसिकता का परिचय देते हुए तर्क-वितर्क करते हुए हिंदी में टिप्पणी करें.
आपका प्रयास अच्छा लगा.......
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