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मंगलवार, नवंबर 02, 2010

शायरों की महफिल से

  हिंदी के प्रचार प्रसार में अग्रणी प्रकाशन
शकुन्तला प्रेस ऑफ़ इंडिया प्रकाशन द्वारा प्रस्तुत
युवाओं के दिलों की धड़कनों को तेज करने के लिए  पेश है    
                              आपकी शायरी

मेरा  लगभग 13  साल पहले एक ख्याब था कि- एक अपनी शेरों-शायरी की "आपकी शायरी " के नाम से एक किताब प्रकाशित करूँ और फिर उसके बाद "आपकी शायरी" के द्धितीय संसकरण में आमन्त्रित्र शायरों की रचनाएँ  प्रकाशित हो. आज  यह ख्याब किताब के रूप में तो नहीं मगर ब्लॉग के माध्यम से कुछ हद तक पूरा हो रहा है. इसमें अपनी रचनाओं  के साथ कुछ संकलन रचनाएँ  भी प्रकाशित करूँगा.
"सुना है आप हमारा घर भूल गए
अरे! भूले तो भूल गए
इसमें भी पछताना  क्या
भूले तो हम
मगर हम कुछ इस कद्र भूले
कि उनका घर तो याद रहा
मगर अपना घर भूल गए."
 

2 टिप्‍पणियां:

  1. कब ठहरेगा दर्द-ए-दिल, कब रात बसर होगी
    सुनते थे वो आयेंगे, सुनते थे सहर होगी
    कब जान लहू होगी, कब अश्क गुहर होगा
    किस दिन तेरी शुनवाई, ऐ दीद-ए-तर होगी........!!
    ---फैज़ अहमद फैज़

    जवाब देंहटाएं
  2. ख्वाबे-मंज़िल देखते ही रह गए मंज़िल से दूर,
    वो कश्ती आज भी है नाखुदा साहिल से दूर।

    जवाब देंहटाएं

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